सुप्रीम कोर्ट का फैसला : महिलाओं को एक और अधिकार मिल गया है जो कि संपत्ति की विरासत से जुड़ा हुआ है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि बेटियों को उनके पिता की संपत्ति में बराबरी का हक मिलना चाहिए। कोर्ट ने यह भी कहा है कि बिना वसीयत के मृत हिंदू पुरुष की बेटियां पिता की स्व अर्जित और अन्य संपत्ति पाने की हकदार होगी। इनका हक हिंदू उत्तराधिकार कानून 1956 लागू होने से पहले से मान्य होगा। साथ ही अदालत ने यह भी कहा है कि महिलाओं की परिवार के अन्य सदस्यों की अपेक्षा वरीयता होगी। 51 पन्नों का लिया लिया गया फैसला महिलाओं के लिए एक बड़ी जीत के रूप में देखा जा रहा है।
हमारे देश में महिलाओं को उत्तराधिकार से जुड़े मामलों में खासी सामाजिक और कानूनी अड़चनों से उलझना पड़ता है। हाल ही में जारी किए गए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्व 5 में 43% महिलाओं ने घर या जमीन का मालिकाना हक होने की बात कही है।उसके बाद भी महिलाओं के संपत्ति पर असल अधिकार और नियंत्रण पर संदेह होता है। 2020 में मैनचेस्टर यूनिवर्सिटी में की गई अकस्टडी बताती है कि गांव में केवल 16% महिलाएं ही जमीन का मालिकाना हक रखती है।
जाने खेती की जमीन पर हक कब मिलेगा?
महिलाओं के लिए संपत्ति के अधिकारों में बड़ा पेच कृषि भूमि का है। क्योंकि कृषि भूमि का उत्तराधिकार राज्य के कानूनों के हिसाब से चलता है और वह धर्म आधारित नहीं है। सेंट्रल पर्सनल लॉ और राज्य के कानूनों के बिच काफी विरोधाभास है। हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर व पंजाब में महिलाओं को कृषि भूमि में अधिकार नहीं मिलता। विधवाओं और महिलाओं को कुछ अधिकार जरूर मिले हैं पर वे वरीयता के क्रम में पुरुषों से पीछे हैं। दिल्ली में विधवाओं को कृषि भूमि पर अधिकार दिया गया है परन्तु बेटियों को नहीं।
उत्तर प्रदेश में बेटियां और बहनों को कृषि भूमि में हिस्सा मिलता है पर वे वरीयता क्रम में नीचे हैं। 2015 में लागू हुए यूपी रेवेन्यू कोड, 2006 के आधार पर , कृषि भूमि के संबंध में जहां कोई वसीयत नहीं है, शादीशुदा बेटियों को तभी हिस्सा मिलेगा जब मृतक की विधवा, पुरष उत्तराधिकारी, मां, पिता या कोई अविवाहित बेटी न हो।
वहीँ अगर हरियाणा की बात की जय तो हरियाणा ने तो दो बार हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के अंतरगर्त महिलाओं को मिले अधिकार भी छीन लेने की कोशिश की। इतना ही नहीं कई राज्यों में महिलाओं को संपत्ति देने का विरोध होता आ रहा है। जब तक कृषि भूमि के संबंध में भी महिलाओं को बराबरी का हक नहीं मिलता, उनके संपत्ति अधिकारों का यह विषय अधूरा ही रहेगा।